No confidence motion अविश्वास प्रस्ताव क्या है?
जब ससंद में विपक्ष के किसी दल को लगता है कि मौजूदा सरकार के पास बहुमत नहीं है या फिर सरकार सदन में अपना विश्वास खो चुकी है, तब अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है। लेकिन सिर्फ किसी एक के लगने भर से ये नहीं हो सकता कि सरकार गिर जाए या प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़े बल्कि इसका एक पूरा प्रोसेस होता है। इस आज की इस पोस्ट में आपको पूरा प्रोसेस बताने वाले हैं, तो इस पोस्ट को आखिर तक पूरा जरूर पढ़ें।
जब लोकसभा में किसी विपक्षी पार्टी को यह लगने लगता है कि मौजूदा सरकार के पास पूर्ण बहुमत नहीं है या सदन में वर्तमान सरकार अपना विश्वास खो चुकी है तो विपक्षी पार्टी अविश्वास प्रस्ताव लाती है। इसे ही No Confidence Motion या अविश्वास प्रस्ताव कहते हैं।
अविश्वास प्रस्ताव ज्यादातर सरकार का विरोध करने वाले यानी कि विपक्षी दल लाते हैं। इसके साथ ही कोई भी लोकसभा सांसद अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है लेकिन उस लोकसभा सांसद के पास 50 सांसदों के समर्थन का हस्ताक्षर होना जरूरी हैं। इसके बाद लोकसभा स्पीकर के सामने यह प्रस्ताव रखा जाता है। लोकसभा की नियमावली 198 के अनुसार यदि स्पीकर उस अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर कर लेता है तो प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अंदर इस अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा कराई जाती है। लोकसभा स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग भी करवा सकता है।
जब सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है तो सत्ताधारी पार्टी को यह साबित करना पड़ता है कि उनके पास पूर्ण बहुमत है। इस नो कॉन्फिडेंस मोशन या अविश्वास प्रस्ताव के वोटिंग प्रक्रिया में सिर्फ लोकसभा के ही सांसद ही शामिल हो सकते हैं, राज्यसभा के सांसद वोटिंग प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेते हैं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-75 में यह कहा गया है कि केंद्रीय मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह है, अर्थात् इस सदन में बहुमत हासिल होने पर ही मंत्रिपरिषद बनी रह सकती है अन्यथा नही। इसके खिलाफ यदि अविश्वास प्रस्ताव पारित होता हैं तो मौजूदा प्रधानमंत्री सहित पुरे मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है।
अविश्वास प्रस्ताव को सदन में पेश करने की प्रक्रिया
- लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमावाली के नियम 198(1) से 198(5) तक मंत्रिपरिषद में अविश्वास का प्रस्ताव प्रस्तुत करने हेतु प्रक्रिया निर्धारित की गई है।
- यह केवल एक लाइन का प्रस्ताव होता है जिसका सामान्य स्वरूप इस प्रकार है – यह सदन मंत्रिपरिषद में अविश्वास व्यक्त करता है।
- नियम 198(1)(क) के तहत अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले सदस्य को लोकसभा स्पीकर के बुलाने पर सदन से इसके लिये अनुमति लेनी होती है।
- नियम 198(1)(ख) के तहत सुबह 10 बजे तक इस प्रस्ताव की लिखित सूचना लोकसभा महासचिव को देनी होती है। इस समय के बाद मिली हुई सूचना को अगले दिन मिली सूचना माना जाता है।
- नियम 198(2) के तहत प्रस्ताव के पक्ष में कम से कम 50 सदस्यों का होना आवश्यक है। यदि इतने सांसद इस प्रस्ताव के पक्ष में न हों तो लोकसभा अध्यक्ष प्रस्ताव रखने की अनुमति नहीं देते।
- नियम 198(3) के तहत अध्यक्ष अनुमति मिलने के बाद इस पर चर्चा के लिये एक या इससे अधिक दिन या किसी दिन का एक भाग निर्धारित करते हैं।
- नियम 198(4) के तहत अध्यक्ष चर्चा के अंतिम दिन मतदान के ज़रिये निर्णय की घोषणा करते हैं।
- नियम 198(4) के तहत भाषणों की समय-सीमा तय करने का अधिकार अध्यक्ष को मिला है।
- इसे मंज़ूरी मिलने पर सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन को यह साबित करना होता है कि उन्हें सदन में ज़रूरी समर्थन प्राप्त है।
- लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव को मंज़ूरी के लिये कम-से-कम 50 सांसदों का समर्थन ज़रूरी होता है।
- इसमें वोटिंग के लिये केवल लोकसभा के सांसद ही पात्र होते हैं, राज्यसभा के सांसद वोटिंग प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकते।
- विपक्षी दल को इसकी लिखित सूचना लोकसभा स्पीकर को देनी होती है। इसके बाद लोकसभा स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहते हैं।
- यदि लोकसभा स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को मंज़ूरी दे देते हैं, तो प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अदंर इस पर चर्चा करना ज़रूरी है।
- इसके बाद लोकसभा स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करा सकता है या फिर कोई और फैसला ले सकता है।
- इसके लिये मतदान होने पर सरकार अपने सांसदों के लिये व्हिप जारी कर सकती है, जिसके बाद अपनी पार्टी लाइन से हटकर मतदान करने वाला सांसद अयोग्य माना जा सकता है।
- अविश्वास प्रस्ताव में सदन में मौजूद सदस्यों में आधे से एक ज़्यादा ने भी यदि सरकार के खिलाफ वोट दे दिया तो वह सरकार गिर जाती है।
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अब तक संसद में लाये गये अविश्वास प्रस्ताव
- भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार अगस्त 1963 में जे.बी. कृपलानी ने अविश्वास प्रस्ताव रखा था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार के खिलाफ रखे गए इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट और विरोध में 347 वोट पड़े थे।
- आज तक संसद में 26 से ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव रखे जा चुके हैं और इसमें सबसे ज़्यादा या 15 अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार के खिलाफ लाये गये।
- लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकारों ने तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया।
- अब तक अविश्वास प्रस्ताव का सामना करते हुए पहली बार 1978 में सरकार गिरी थी, जब तत्कालीन मोरारजी देसाई सरकार को मतदान में हार का सामना करना पड़ा था। उनकी सरकार के खिलाफ कुल दो बार यह प्रताव लाया गया था।
- 1979 में अविश्वास प्रस्ताव पर ज़रूरी बहुमत नहीं जुटा पाने के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री चरण सिंह ने भी इस्तीफा दे दिया था।
- इसके बाद 1989 में वी.पी. सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के बाद इस्तीफा देना पड़ा था।
- 1993 में कांग्रेस की नरसिंह राव सरकार बहुत कम अंतर से अविश्वास प्रस्ताव को पार कर पाई थी।
- 1997 में एच.डी. देवगौड़ा की संयुक्त मोर्चा सरकार को अविश्वास प्रस्ताव में हार के बाद इस्तीफा देना पड़ा था।
- इसके बाद 1998 में संयुक्त मोर्चे की आई.के. गुजराल सरकार को भी अविश्वास प्रस्ताव में हारने के बाद इस्तीफा देना पड़ा था।
- राजग की तरफ से अटल बिहारी वाजपेयी ने दो बार विश्वास मत प्राप्त करने की कोशिश की और दोनों बार असफल रहे। 1996 में उन्होंने केवल 13 दिन सरकार चलाने के बाद मत-विभाजन से पहले ही इस्तीफा दे दिया था और 1998 में उनकी सरकार केवल एक वोट से हार गई थी।
- जुलाई 2009 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के विरोध में संप्रग सरकार के खिलाफ अविश्वास मत लाया गया था। तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मामूली बहुमत से इस पर विजय पाई थी।
- सबसे ज़्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड माकपा सांसद ज्योतिर्मय बसु के नाम है। उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ रखे थे।
- पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किये। पहला प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ था और दूसरा नरसिंह राव सरकार के खिलाफ था।
अविश्वास प्रस्ताव और विश्वास प्रस्ताव में क्या अंतर हैं?
संसद में अविश्वास प्रस्ताव हमेशा विपक्षी पार्टी की तरफ से लाया जाता है, जबकि विश्वास प्रस्ताव सदन में अपना बहुमत दिखाने के लिए सत्ताधारी पार्टी की तरफ से लाया जाता है।
अविश्वास प्रस्ताव और विश्वास प्रस्ताव दोनों ही प्रस्ताव संसदीय प्रकिया के अंग हैं, जिसके तहत सदन में सरकार के बहुमत को जाँचा जाता है।
अविश्वास प्रस्ताव संसदीय परंपरा का एक अभिन्न अंग है। जब पूर्ण बहुमत वाली सरकारें काम करती थीं तब अविश्वास प्रस्ताव को विपक्ष के प्रतीकात्मक विरोध का एक साधन माना जाता था, जिसका मुख्य उद्देश्य तत्कालीन सरकार की जवाबदेही तय करना होता था। लेकिन जैसे ही गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ तो विपक्ष के इस हथियार का महत्त्व काफी बढ़ गया है। जब कभी भी विपक्ष को लगता है कि उसके पास तत्कालीन सरकार को मुश्किल में डालने लायक संख्या बल मौजूद है तो विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आता है। अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वे सभी सदस्य आते हैं जिन्हें मौजूदा सरकार में विश्वास नहीं होता हैं।
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मैं उम्मीद करता हूँ कि अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है और इसे सदन में पेश करने की प्रक्रिया क्या है? का Post आपको अच्छा लगा होगा। ऐसे ही Daily ज्ञानवर्धक पोस्ट पढने के लिए Studysthan.com पर विजिट करें। धन्यवाद…..